Kavita Jha

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सलोनी का प्यार (उपन्यास)लेखनी कहानी -17-Jan-2022

भाग -8
गुलाबी लिफाफा जिसके पीछे ओपेन विद स्माइल और स्माइली के साथ एक लाल रंग का दिल बना रखा था सुरजीत ने। स्माइली देख चिढ़ हो रही थी, वो हमेशा मेरी कॉपी के पन्नों के पीछे ऐसे ही स्माइली बनाने की प्रेक्टिस करता था,क्या इसलिए कि वो किसी और लड़की को लव लैटर में स्माइली बना कर भेजे। गुस्सा चढ़ रहा था उस पर फिर भी ना जाने क्यों गुस्से में फाड़ा नहीं था और ना ही खोल कर पढ़ा था। जब मेरे लिए वो ख़त था ही नहीं तो क्यों पढ़ती।
उस दिन से तबियत बिगड़ती गई। ये दिल टूटने के कारण था या मौसम बदलने के कारण।मौसम तो बदल ही गया था हमारी दोस्ती का। उसका मेरे घर आना, मेरा हाल पूछना नियमित रहा। उसे जरा भी इस बात का एहसास ही नहीं था कि मेरी तबियत उसके कारण ही खराब हुई है। रात भर नींद नहीं आती,उसके साथ गुड्डे गुड़िया की शादी वाले खेल याद आते। अचानक पीछे से आ मेरे आंखों को बंद करना,मेरा हाथ अपने हाथों में लेना और मेरे बालों के साथ खेलना, उसका हर स्पर्श याद करती। भूख प्यास बिल्कुल ना लगती, पढ़ने में मन ही नहीं लगता। पहले हल्का-सा बुखार चढ़ता फिर धीरे धीरे तेज बुखार होने लगा। मम्मी पापा डॉक्टर के पास ले गए कई टैस्ट करवाए, शरीर में खून की कमी तो थी ही और टाइफाइड हो गया था। मम्मी पापा दोनों को उदास देखती तो बुरा लगता, पर मेरा छोटा भाई आकाश तो अब ज्यादा ही खुश रहने लगा था। जब एक दिन सुना आकाश मानसी दीदी  को कह रहा था, अच्छा होगा ना दीदी ये अगर मर गई तो हम दो ही भाई बहन रहेंगे। वैसे भी देखा है ना हर जगह पोस्टर पर लिखा होता है हम दो हमारे दो और बच्चे दो ही अच्छे। वैसे भी बड़ी दीदी मुझे सलोनी दीदी बिल्कुल अच्छी नहीं लगती, कितनी काली और बदसूरत है ना। मुझे तो उसे अपनी बहन कहते हुए भी शर्म आती है।पापा मम्मी आप और मैं हम चारों गोरे हैं तो सलोनी दीदी कैसे काली हो गई। मुझे तो लगता है वो हमारी बहन है ही नहीं ,पापा उसे कचरे से उठा कर लाए थे और मम्मी उसे हमारे हिस्से का खाना पीना और प्यार दुलार सब दे देती है। मेरा भाई आकाश मुझसे पांच साल छोटा है और मानसी दीदी छह साल बड़ी है।
जब आकाश दीदी को मेरे बारे में ये सब बता रहा था तो दीदी अपनी कहानी की किताब बंद कर ध्यान से उसकी बात सुन रही थी,उसे डांटने की जगह उसकी हां में हां ही मिला रही थी। माना आकाश छोटा है पर मानसी दीदी तो इतनी बड़ी हैं और अब उनकी शादी की बात भी चल रही है। बीस साल की हो गई हैं, अच्छा रिश्ता मिलते ही उनके हाथ पीले कर देंगे पापा मम्मी से कह रहे थे। मैं अपने दोनों भाई बहन से बहुत प्यार करती हूं फिर क्यों ये दोनों मुझसे इतनी नफ़रत करते हैं।मेरे लिए तो न ए कपड़े खिलौने भी कभी नहीं आते ,मानसी दीदी के पुराने कपड़े,खिलौने ,किताबें ही तो मुझे हमेशा मिलती आई हैं।मैंने आज तक भगवान से कभी कोई शिकायत नहीं की, मैं हमेशा दूसरों को खुश रखना चाहती थी और खुद भी खुश रहती। 
बिमारी में नकारात्मक सोच बढ़ते ही जाते हैं और ऐसा ही मेरे साथ हो रहा था। मैं अब सुरजीत के साथ साथ अपने भाई बहन से भी नफरत करने लगी थी, मेरा रंग काला है मैं बदसूरत हूं तो इसमें मेरी क्या गलती है। भगवान ने ऐसा क्यों बनाया है मुझे, क्यों नहीं मानसी दीदी जैसा सुंदर बनाया। 
भगवान का एक अनमोल तोहफ़ा मेरी सहेली कृतिका थी, जिसने हमेशा मेरा साथ दिया। वो रोज शाम को आती और स्कूल में क्या सब हुआ बताती। बोर्ड इक्जाम में सिर्फ एक महीना बांकी था, और मेरी हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी। कुछ दिन पहले कितनी मस्ती करती थी मैं अपनी सहेलियों के साथ गलियों में घूमती। बिल्कुल झल्ली दिखती है ऐसा ही ना कहते थे मेरे कपड़ों और मुझे देखकर कई लोग। 
कृतिका मुझे नए नए चुटकुले सुनाती, हंसाने की कोशिश करती। पर हंसी तो जैसे कोसों दूर चली गई थी मुझसे। पन्द्रह दिन बिस्तर पर लेटे लेटे थक गई थी। कृतिका मुझे समझाती, और समझती भी थी मेरी बात पर उसे कैसे बताती कि उसी की बुआ के घर रहने आई उसकी भांजी संजना के कारण मेरी ये हालत हुई है।
सलोनी खुद को संभाल यार, क्या बात तुझे खाऐ जा रही है बता ना यार। तेरी ये हालत देखी नहीं जा रही है मुझसे। कुछ तो है जो तूं मुझसे छुपा रही है। कृतिका ने जब बार बार ये बात कही।मैं उससे लिपट कर रो पड़ी थी और वो गुलाबी लिफाफा उसके हाथ में थमा दिया।
क्या है ये सलोनी? 
पहले वो मुस्कुराई, इश्क़ मुश्क का चक्कर है क्या। अरे तुझे तो लवेरिया हो गया है लगता है।
मैंने उसे जब सब बताया तो उसका भी मुंह उतर आया। फिर जब उसने कहा, बुरा मत मान यार ये शुक्र मना जो तूं जान गई कि वो भी बाकी लड़कों की तरह है जो सिर्फ सुंदरता के पीछे भागता है, वो तेरी भावनाओं के साथ खेल रहा था बस ये खेल ख़त्म। ला दे ये खत मैं सही जगह पहुंचा दूं। बस अब तुझे मेरी कसम है जो तूने खुद को तकलीफ दी। समय पर खाना और दवाई खा, जल्दी ठीक होना है ना और दसवीं का इक्जाम भी तो देना है। क्या हुआ जो एक तरफा प्यार का इजहार भी नहीं कर पाई। आगे बढ़ना है अब पीछे मुड़कर मत देख!
***
कविता झा काव्या कवि
# लेखनी
## लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता
०३.०२.२०२२

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3 Comments

Arshi khan

03-Mar-2022 09:52 PM

Bahut sundar

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Seema Priyadarshini sahay

03-Mar-2022 04:29 PM

बहुत ही बेहतरीन भाग

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Gunjan Kamal

03-Mar-2022 03:17 PM

शानदार भाग👌

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